जून की गर्मी में तपता ये आसमाँ,
उगलती है आग ये तपती धरती,
जीवन की नईया को पार करने को,
खटता है हर एक मेहनती।।
धन दौलत और ऐशो आराम
ताकती ये आंखे इन्हें पाने को,
तपती धूप में ये दशहरी आम,
ललचाता चंचल मन इन्हें पाने को।।
ये सब नहीं है भाग्य का इशारा,
ऐ मेहनतकश इन्सान ,उठ और कर मेहनत,
नाप ले दूरी अपने हिस्से की और कर ले मुट्ठी में आसमाँ।।
उगलती है आग ये तपती धरती,
जीवन की नईया को पार करने को,
खटता है हर एक मेहनती।।
धन दौलत और ऐशो आराम
ताकती ये आंखे इन्हें पाने को,
तपती धूप में ये दशहरी आम,
ललचाता चंचल मन इन्हें पाने को।।
ये सब नहीं है भाग्य का इशारा,
ऐ मेहनतकश इन्सान ,उठ और कर मेहनत,
नाप ले दूरी अपने हिस्से की और कर ले मुट्ठी में आसमाँ।।
अच्छा है।
ReplyDeleteRishabh rocking.....
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