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Thursday, 9 May 2019

कर ले मुट्ठी में आसमाँ

जून की गर्मी में तपता ये आसमाँ,
उगलती है आग ये तपती धरती,
जीवन की नईया को पार करने को,
खटता है हर एक मेहनती।।

धन दौलत और ऐशो आराम
ताकती ये आंखे इन्हें पाने को,
तपती धूप में ये दशहरी आम,
ललचाता चंचल मन इन्हें पाने को।।

ये सब नहीं है भाग्य का इशारा,
ऐ मेहनतकश इन्सान ,उठ और कर मेहनत,
नाप ले दूरी अपने हिस्से की और कर ले मुट्ठी में आसमाँ।।