मत करो रुखसत बेगानों-सा मुझे,मेरा इन्तेजार अभी बाकी है,
मेरी अर्थी में फूलों की नहीं,मेरे महबूब की महक अभी बाकी है,
मरना कौन चाहता है इस जहाँ में,पर मुझमें शर्म थोड़ी बाकी है,
कैसे जियूं बिन मोहब्बत के अपनी,दिल में दर्द मेरे काफी है।
-- ऋषभ सचान
मेरी अर्थी में फूलों की नहीं,मेरे महबूब की महक अभी बाकी है,
मरना कौन चाहता है इस जहाँ में,पर मुझमें शर्म थोड़ी बाकी है,
कैसे जियूं बिन मोहब्बत के अपनी,दिल में दर्द मेरे काफी है।
-- ऋषभ सचान
वाह वाह सचान साहब
ReplyDeleteधन्यवाद शोभित भाई, बस ऐसे ही अपना प्यार बनाये रखना।
DeleteNice guru
ReplyDeleteधन्यवाद भाई, बस आपसे ही सीखा है।
Deleteधन्यवाद भाई।
ReplyDeleteLovely lines bro
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