Sunday 18 January 2015

मेरा दर्द

मत करो रुखसत बेगानों-सा मुझे,मेरा इन्तेजार अभी बाकी है,
मेरी अर्थी में फूलों की नहीं,मेरे महबूब की महक अभी बाकी है,
मरना कौन चाहता है इस जहाँ में,पर मुझमें शर्म थोड़ी बाकी है,
कैसे जियूं बिन मोहब्बत के अपनी,दिल में दर्द मेरे काफी है।

-- ऋषभ सचान

6 comments:

  1. वाह वाह सचान साहब

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    1. धन्यवाद शोभित भाई, बस ऐसे ही अपना प्यार बनाये रखना।

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    1. धन्यवाद भाई, बस आपसे ही सीखा है।

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  3. धन्यवाद भाई।

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