शिखर (Hindi,Kavita,Shayri,Gazal), Shikhar
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Monday 1 July 2019
Thursday 9 May 2019
कर ले मुट्ठी में आसमाँ
जून की गर्मी में तपता ये आसमाँ,
उगलती है आग ये तपती धरती,
जीवन की नईया को पार करने को,
खटता है हर एक मेहनती।।
धन दौलत और ऐशो आराम
ताकती ये आंखे इन्हें पाने को,
तपती धूप में ये दशहरी आम,
ललचाता चंचल मन इन्हें पाने को।।
ये सब नहीं है भाग्य का इशारा,
ऐ मेहनतकश इन्सान ,उठ और कर मेहनत,
नाप ले दूरी अपने हिस्से की और कर ले मुट्ठी में आसमाँ।।
उगलती है आग ये तपती धरती,
जीवन की नईया को पार करने को,
खटता है हर एक मेहनती।।
धन दौलत और ऐशो आराम
ताकती ये आंखे इन्हें पाने को,
तपती धूप में ये दशहरी आम,
ललचाता चंचल मन इन्हें पाने को।।
ये सब नहीं है भाग्य का इशारा,
ऐ मेहनतकश इन्सान ,उठ और कर मेहनत,
नाप ले दूरी अपने हिस्से की और कर ले मुट्ठी में आसमाँ।।
Wednesday 8 May 2019
।।वक़्त की जुबां।।
गुजरा जमाना तो वो याद आ गए,
जीवन की धूप में वो छाँव ला गए,
यू तो इन्तेजार आज भी है उनका
बस जुबाँ पे खामोशी ला गए।।
Sunday 18 January 2015
मेरा दर्द
मत करो रुखसत बेगानों-सा मुझे,मेरा इन्तेजार अभी बाकी है,
मेरी अर्थी में फूलों की नहीं,मेरे महबूब की महक अभी बाकी है,
मरना कौन चाहता है इस जहाँ में,पर मुझमें शर्म थोड़ी बाकी है,
कैसे जियूं बिन मोहब्बत के अपनी,दिल में दर्द मेरे काफी है।
-- ऋषभ सचान
मेरी अर्थी में फूलों की नहीं,मेरे महबूब की महक अभी बाकी है,
मरना कौन चाहता है इस जहाँ में,पर मुझमें शर्म थोड़ी बाकी है,
कैसे जियूं बिन मोहब्बत के अपनी,दिल में दर्द मेरे काफी है।
-- ऋषभ सचान
Friday 16 January 2015
इन्तजार
जीवन अभी बाकी है-
कुछ चीजों का मत करिये हिसाब-किताब।
मेरे जीवन का संघर्ष,
अभी बाकी है।।
मुझे चलने दो इन ऊँचे-नीचे पथ पर।
मेरी मंजिल आना,
अभी बाकी है।।
बोणी कली बन गयी,पर उसका खिलना,
अभी बाकि है।
बसन्त पतझड़ ले गयी,पर हरियाली होना,
अभी बाकी है।।
मुझे चलने दो इन ऊँचे-नीचे पथ पर,
मेरी मंजिल आना,
अभी बाकी है।।
-- शिवम माहेष्वरी एवं ऋषभ सचान
Friday 9 January 2015
अनुभव
जान कर सब ,क्यों अनजान हो।
लाखों की भीड़ में भी तुम मेरी जान हो।
मिट जाये ख़ूबसूरती इस दुनिया की चाहे।
मैं तुम्हारा और तुम मेरी आसमान हो।
क्या फर्क पड़ता है जो,मैं हिन्दू और तुम मुसलमान हो।
मेरी मोहब्बत का तो बस तुम ही ईमान हो।।
-- ऋषभ सचान
-- ऋषभ सचान
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