Friday 9 January 2015

अनुभव

जान कर सब ,क्यों अनजान हो।
लाखों की भीड़ में भी तुम मेरी जान हो।
मिट जाये ख़ूबसूरती इस दुनिया की चाहे।
मैं तुम्हारा और तुम मेरी आसमान हो।
क्या फर्क पड़ता है जो,मैं हिन्दू और तुम मुसलमान हो।
मेरी मोहब्बत का तो बस तुम ही ईमान हो।।

-- ऋषभ सचान

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